“राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है”
महात्मा गांधी
“सभी भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपी आवश्यक है तो वो देवनागरी ही हो सकती है”
जस्टिस कृष्णस्वामी अय्यर

हिंदी भाषा का इतिहास:
हिंदी शब्द की उत्पति ‘सिन्धु’ से जुड़ी है। ‘सिन्धु’ ‘सिंध’ नदी को कहते हैं। सिन्धु नदी के आस-पास का क्षेत्र सिन्धु प्रदेश कहलाता है। संस्कृत शब्द ‘सिन्धु’ ईरानियों के सम्पर्क में आकर हिन्दू या हिंद हो गया। ईरानियों द्वारा उच्चारित किये गए इस हिंद शब्द में ईरानी भाषा का ‘एक’ प्रत्यय लगने से ‘हिन्दीक’ शब्द बना है जिसका अर्थ है ‘हिंद का’। यूनानी शब्द ‘इंडिका’ या अंग्रेजी शब्द ‘इंडिया’ इसी ‘हिन्दीक’ के ही विकसित रूप हैं।
हिंदी का साहित्य 1000 ईसवी से प्राप्त होता है। इससे पूर्व प्राप्त साहित्य अपभ्रंश में है इसे हिंदी की पूर्व पीठिका माना जा सकता है। अपने प्रारंभिक दौर में हिंदी सभी बातों में अपभ्रंश के बहुत निकट थी, इसी अपभ्रंश से हिंदी का जन्म हुआ है। आदि अपभ्रंश में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ केवल यही आठ स्वर थे। दो नये स्वर ऐ, औ इसी अवधि मे हिंदी में जुड़े । प्रारंभिक 1000 से 1100 ईसवी के आस-पास तक हिंदी अपभ्रंश के समीप ही थी। इसका व्याकरण भी अपभ्रंश के समान काम कर रहा था। धीरे-धीरे परिवर्तन होते हुए और 1500 ईसवी आते-आते हिंदी स्वतंत्र रूप से खड़ी हुई।
मध्यकाल (1500-1800 तक) की अवधि में हिंदी में बहुत परिवर्तन हुआ। देश में मुगलों का शासन होने के कारण उनकी भाषा का प्रभाव हिंदी पर पड़ा। परिणाम यह हुआ कि फारसी भाषा के लगभग 3500 शब्द, अरबी के 2500 शब्द, पश्तो के 50 शब्द और तुर्की के 125 शब्द हिंदी कि शब्दावली में शामिल हो गए।यूरोप के साथ बढ़ते व्यापार के परिणाम स्वरूप पुर्तगाली, स्पेनी, फ्रांसीसी और अंग्रेज़ी के शब्दों का समावेश हिंदी में हुआ। हिंदी में क, ख, ग, ज, फ, इन पांच नई ध्वनियों का समागम हुआ, जिनके उच्चारण प्रायः फारसी पढ़े- लिखे लोग ही करते थें। इसी अवधि में रीतिकालीन काव्य भी लिखा गया।

आधुनिक काल ( 1800 से अब तक) हिंदी में अनेक परिवर्तनों का साक्षी है। परतंत्र में रहते हुए देशवासी इसके विरुद्ध खड़े होने का प्रयास कर रहे थे। अंग्रेजी का प्रभाव देश की भाषा और संस्कृति पर दिखाई पड़ने लगा। अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन हिंदी के साथ बढ़ने लगा। मुगलकालीन व्यवस्था समाप्त होने से अरबी, फारसी के शब्दों के प्रचलन में गिरावट आई। इस पूरे कालखंड को 1800 से 1850 तक और फिर 1850 से 1900 तक तथा 1900 से 1910 तक और 1950 से 2000 तक विभाजित किया जा सकता है।
हिन्दी विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केन्द्रीय स्तर पर भारत में दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिंदुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक है और अरबी-फ़ारसी के शब्द कम हैं। हिंदी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है।
हिंदी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। साल 2001 की जनगणना के अनुसार लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थें, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था।
हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिंदी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात की जनता भी हिन्दी बोलती है।1 फरवरी 2019 को अबू धाबी में हिन्दी को न्यायालय की तीसरी भाषा के रूप में मान्यता मिली।
हिन्दी भारत में सम्पर्क भाषा का कार्य करती है और कुछ हद तक पूरे भारत में आमतौर पर एक सरल रूप में समझी जानेवाली भाषा है। हिन्दी का कभी-कभी नौ भारतीय राज्यों के संदर्भ में भी उपयोग किया जाता है, जिनकी आधिकारिक भाषा हिंदी है और हिन्दी भाषी बहुमत है, अर्थात् बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का।
“यद्यपि मैं उन लोगो में से हूँ, जो चाहते हैं और जिनका विचार है कि हिंदी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है।”
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
दोस्तों ! हिंदी हमारे देश की राजभाषा है| हमें गर्व होना चाहिए की हम हिंदी भाषी हैं। हमें देश की राजभाषा का सम्मान करना चाहिए।हमारे देश में सभी धर्मों के लोग रहते हैं| उनके खान-पान, रहन-सहन और वेश-भूषा अलग-अलग हैं पर एक हिंदी ही है जो सभी धर्मों के लोगों को एकता में जोड़ती है। हिंदी भाषा हमारे देश की धरोहर है| जिस तरह हम अपने तिरंगे को सम्मान देते हैं उसी प्रकार अपने देश की राजभाषा को भी सम्मान देना चाहिए।
देश के लेखको ने हिंदी के ऊपर कई गीत और रचनाएँ लिखीं हैं जिसमे एक है “हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा” ये शब्द देश की शान में लिखे गए हैं और हमें गर्व महसूस कराते है। अपने अन्दर और दिलो दिमाग में यह सोच होनी चाहिए की सबसे पहले हमारा देश आता है।
हिन्दी भाषा की स्थिति :
हिंदी भाषा पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बोलने में चौथे स्थान पर आती है लेकिन उसे अच्छी तरह से समझना, पढ़ना तथा लिखना यह बहुत कम संख्या में लोग जानते हैं। आज के समय में हिंदी भाषा के ऊपर अंगेर्जी भाषा के शब्दों का ज्यादा असर पड़ा है।आज के समय में अंग्रेजी भाषा ने अपनी जड़ें ज्यादा फैला लीं है जिससे हिंदी भाषा के भविष्य में खो जाने की चिंता बढ़ गयी है।
जो लोग इस हिंदी भाषा में ज्ञान रखते हैं उन्हें हिंदी के प्रति अपने जिम्मेदारी का बोध करवाने के लिये 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है जिससे वे सभी अपने कर्तव्यों का सही पालन करके हिंदी भाषा के गिरते हुए स्तर को बचा सकें। लेकिन समाज और सरकार इसके प्रति उदासीन दिखती है| हिन्दी भाषा को आज तक संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा भी नहीं बनाया जा सका है।
हालात ऐसे आ गए हैं कि हिंदी भाषा को हिंदी दिवस के मौके पर सोशल मीडिया पर आज भी “हिंदी में बोलो” करके शब्दों का प्रयोग करना पड़ रहा है। कुछ पत्रकारों ने मीडिया से कहा है कि कम से कम हिंदी दिवस के मौके पर तो हिंदी में बात-चीत करो जिससे हिंदी राजभाषा को कुछ सम्मान मिल सके।
स्वर्गीय डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने कहा था कि ‘ जो समाज अपनी भाषा पर गर्व नहीं कर सकता उसका पतन निश्चित है।’ यह पतन सांस्कृतिक हो सकता है अथवा नैतिक हो सकता है।यह कहना बिल्कुल उचित है।आज जब हमारे पर्यावरण में हर प्रकार का प्रदूषण फैल रहा है तब हिंदी भाषा भी इससे अछूती नहीं है, अंतर सिर्फ यह है कि हिंदी भाषा मे बढ़ता प्रदूषण हिंदी के अंग्रेजीकरण का है। यह बात बिल्कुल आकस्मिक नहीं है बल्कि ये पिछले कई वर्षों के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है। हम सब रोजाना हिंदी के विकृत रूप से दो चार होते हैं परन्तु हम सब ने इसे बहुत सामान्य रुप से देखना शुरु कर दिया है। आज चाहे वह समाचार पत्रिकाएं हो या फिर हिंदी समाचार चैनल या अन्य कोई हिंदी धारावाहिक, हम रोजाना हिंदी भाषा के चीरहरण को देखते हैं।
“हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया”
डॉ राजेंद्र प्रसाद
ऐसे न जाने कितनी बार हम हिंदी भाषा का मजाक बनते हुए देखते हैं परन्तु हमारे लिए यह सब अब ‘नॉर्मल’ हो चला है। हम सब के लिए अपवाद की स्थिति तब होती है जब कोई अंग्रेजी मे हिंदी का मिश्रण करता है। भाषा में बढ़ते प्रदूषण के लिए मीडिया से ज्यादा हम एक समाज के तौर पर जिम्मेदार है।
“मैं दुनिया की सभी भाषाओं की इज्जत करता हूं पर मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं सह नहीं सकता”
आचार्य विनोबा भावे
हमारा समाज अपनी भाषा के अंग्रेजीकरण के प्रति शून्य हो चला है। हम आज भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रसित हैं। हम अपने आस पास न जाने कितने ही ऐसे उदाहरण देखते हैं जहाँ लोग अपने बच्चों पर अंग्रेजी बोलने का दबाव डालते हैं और बच्चों को अंग्रेजी का ज्ञान न होने पर हीनता का बोध कराते हैं। ऐसी मानसिकता के लिए हम सब एक समाज के तौर पर जिम्मेदार हैं। तभी हम भाषा में बढ़ते प्रदूषण का विरोध नहीं करते है। और इस मानसिकता का एक बहुत बड़ा कारण हमारी आज की शिक्षा व्यवस्था भी है; जहाँ हिंदी मात्र एक विषय और अंग्रेजी भाषा बन गई हो, वहाँ ऐसा प्रदूषण अचरज पैदा नही करता।

अंग्रेजी भाषा कई सारे रोजगारों के लिए आवश्यक है और इसका ज्ञान होना या अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना गलत नहीं है परन्तु अंग्रेजी भाषा को हिंदी भाषा से बेहतर समझना अथवा हिंदी बोलने पर किसी को अशिक्षित समझना अत्यंत निंदनीय है।हम ऐसा पिछले कई वर्षों से देखते आ रहे हैं कि अगर कोई व्यक्ति हिंदी में बात कर रहा हो तो उससे उसकी शिक्षा का आंकलन होने लगता है।
अपनी भाषा, समाज, सभ्यता के प्रति जैसी हीनभावना का प्रदर्शन हमारा समाज करता है, शायद ही विश्व में अन्यत्र कोई समाज ऐसा करता हो। इसका एक बड़ा कारण हमारी शिक्षा व्यवस्था एवं अन्य संस्थाएं हैं जिन्हें सारे प्रगतिशील विचार सिर्फ पश्चिम में ही दिखे। इतिहास से लेकर भाषा तक तथा भाषा से समाज तक में इस वर्ग को सिर्फ पिछड़ापन ही दिखाई दिया। इस वर्ग ने कभी भी समाज को अपनी सभ्यता और भाषा पर गौरव करने के लिए प्रेरित ही नहीं किया।
आज के वैश्विक युग में अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है। हमारी अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ , विश्व में आज हमारे सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र एवं अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ने का एक महत्वपूर्ण कारण है। पर हमे यह भी ध्यान रखना होगा कि हमारी अपनी भाषाओं का ह्रास न हो। हमें एक होकर अपनी भाषा के लिए आवाज उठानी होगी तभी हम अपनीं भाषाओं के साथ हो रहे खिलवाड़ को रोक सकेंगे।
जय हिन्द।
4 replies on “हिंदी हैं हम”
बहुत सुंदर
बहुत ही बढ़िया लिखा गया है। महत्वपूर्ण जानकारियों के साथ! धन्यवाद!
बहुत सुन्दर। ?
Very nice